मुझको शिकायत है
तुझको क्या बताऊं मैं
कि मुझको क्या शिकायत है
सभी से दोस्ती है उसको
क्यों मुझसे ही अदावत है
कहता हूं मैं चीख चीखकर
वो सुनता नहीं है बात
अपना ये अंदाज़ वो
क्यों मुझको ही दिखावत है
हालत से वो दिल के मेरे
खुद को अंजान बतावत है
पकड़ पकड़ कर हाथ उसके
क्यों मुझको ही जलावत है
कैसे सहूं मैं ये सब यारों
मुझको तुम बतलाओ
आज नहीं तो कल होगी वो मेरी
जब मेरा दिल ये जानत है
उसके दिल में क्या छुपा है
ये तो बस वो ही जानत है
है लाख टके का प्रश्न ये
क्या मुझको अपना मानत है
हूं उधेड़ बुन में फंसा हुआ मैं
कैसे बाहर निकलूंगा
जानबूझ कर जब वो मुझको
हर पल यूं ही सतावत है