मुझको कबतक रोकोगे
मुट्ठी में कुछ सपने लेकर
भरकर जेबों में आशाएं
दिल में है अरमान यही
कुछ कर जाएं, कुछ कर जाएं ।।
सूरज सा तेज नहीं मुझमें
दीपक से जलता देखोगे
अपनी हद रोशन करने से
तुम मुझको कब तक रोकोगे ।।
मैं उस माटी का वृक्ष नहीं
जिसको नदियों ने सींचा है
बंजर माटी में पलकर मैंने
मृत्यु से जीवन खींचा है ।।
तुम हालातों की भट्टी में
जब–जब मुझको झोंकोगे
तप–तप कर सोना बनूंगा मैं
तुम मुझको कब तक रोकोगे ।।
झुक झुक कर सीधा खड़ा हुआ
फिर झुकने का अब शौक नहीं
पिता के हाथों गढ़ा हूं मैं
तुमसे मिटने का खौफ नहीं ।।
पत्थर पर लिखी इबारत हूं
कब तक शीशे से तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नहीं
तुम मुझको कब तक रोकोगे ।।
इस जग में जितने जुल्म नहीं
उतनी सहने की ताकत है
झूठों के साथ में रहकर भी
सच कहने की आदत है ।।
मैं सागर से भी गहरा हूं
तुम कितने कंकड़ फेंकोगे
चुन-चुन के आगे बढूंगा मैं
तुम कब तक मुझको रोकोगे।।
©अभिषेक पाण्डेय अभि
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