मुझको आश्चर्य होता है यह देखकर
मुझको आश्चर्य होता है यह देखकर,
कल तक महक रहे थे जो कुसुम,
क्यों स्याह है आज मुझको देखकर,
यह आकाश जो मुझसे हर्षित था
आज क्यों शरमा रहा है मुझको देखकर।
,ये पक्षी जो मुझको देखकर गुनगुनाते थे तराना,
आज क्यों खामोश है मेरा यह वक़्त देखकर,
क्यों बढ़ा ली है सभी ने मुझसे दूरियां,
और क्यों संकुचित कर लिया है अपना विशाल हृदय,
क्यों बदल लिया है सभी ने,
अपना दिलोदिमाग मेरे प्रति अब।
क्योंकि अब उनको लगता है,
दुःख- दर्द के सिवा उनको,
अब मैं कुछ नहीं दे सकता,
आज मैं उनकी मदद चाहता हूँ,
और तैयार नहीं है इसके लिए।
उम्मीद उनको थी मुझसे यह,
कि मैं उनको आबाद करूंगा,
उनके सपनों को साकार करूंगा,
अब मैं बेरोजगार हूँ , नाहक हूँ,
इसलिए वो मुझसे खिन्न रहते हैं,
मुझको आश्चर्य होता है यह देखकर।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)