मुझको अँधेरे में..
मुझको अँधेरे में रखा
आप उजालों में रहे ।
वाह क्या खूब तुम रिश्ते
निभाने वालों में रहे ।।
जब जरूरत न थी ।
तब दिए जलाते रहे ।।
घने अँधेरे में दिये ।
बुझाने वालों में रहे ।।
बैठ कर खाने का ।
सलीका ही भूल गए ।।
बे लिहाज से खड़े होके ।
खाने वालों में रहे ।।
भटके हुए को राह ।
दिखाना जरूरी था ।।
तुम तो अंधों को आइना ।
दिखाने वालों में रहे ।।
सीधी सी राह पर चलते।
तो अच्छा रहता ।।
राह पर उल्टी मग़र ।
जाने वालों में रहे ।।
दौलत ईमान की कमाते ।
तो चैन से रहते ।।
मग़र हराम की ज्यादाद।
बनाने वालों में रहे ।।
जिस पत्तल में है खाया ।
उसी में छेद किया ।।
पीठ पीछे से ही छुरी ।
चलाने वालों में रहे ।।
✍️सतीश शर्मा ।