मुखौटा
नोंच लेती गर मुखौटा चेहरे पे होता
उसने पूरी शख्सियत पे पर्दा किया था
भारीभरकम शब्दो मे झूठ भांप मै लेती
पर उसने खामोशी से इजहार किया था
हर जख्म कबूल होता,हर दर्द सह मै लेती
पर उसने मेरे भावो का तिरस्कार किया था
क्या तमाशे है जहां के देख लो “प्रीति”
चीर गया दिल को ,जिसे दिल ये दिया था