मुखौटा
ये भी आये, वे भी आये,
सभी ही उनके,
जनाजे मे आये।
आये करीबी, आये रकीबी,
रोते थे बिसूरते थे सभी ही।
उनमें से कुछ थे,
मुखौटे लगाये।
कुछ थे देनदार,
कुछ थे लेनदार।
संग वे अपने,
बही खाते भी लाये।
कुछ आये थे निभाने को फ़र्ज,
नहीं थे उनके रसूखों में दर्ज।
वे सिर्फ इंसानियत,
दिखाने को आये।
कुछ थे दबंग कुछ थे धाँसू,
बहाते थे दिखाने को घड़ियाली आँसू।
देख कर पयाम उनका,
कोरों में मुस्कराये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा