मुखौटा
हम जीते हैं जीवन भर…..एक मुस्कुराहट ओढ़ कर…..
जैसे किसी ने जबरदस्ती…. चिपका दी……हमारे चेहरे पर…..फिर हटाने का मन करे….तो भी नहीं हटा सकते….दिख जाएगी असलियत हमारे चेहरे की …ओर वो चेहरा पसन्द नहीं उसको….जिसने लगा दिया है
यही झूठ का एक परदा…. ओर कहा ओढ़ना होगा यही…..जीवन पर्यन्त…… नहीं तो दर्द तुम्हारा ही है… कोई नहीं पढ़ पायेगा तुम्हारी व्यथा….कोई महसूस नहीं कर सकता तुम्हारे आँसू…. मर्ज़ी तुम्हारी फिर हिम्मत भी तुम्हारी…..उतार फेंको ये मुखोटा ओर ले लो अपने….. हिस्से की खुशियां….पर क्या ये आसान है?
सीमा शर्मा