मुखबिरी
बात उस जमाने की है जब मैंने मैट्रिक की परीक्षा पास करके बगल के गांव की कॉलेज में दाखिला लिया था।
मिजाज में थोड़ी बेफिक्री और आवारगी आने लगी थी। इसमें उस आत्मविश्वास का भी महत्वपूर्ण सहयोग रहा कि अब छोटी मोटी गलतियों पर घरवाले हाथ तो नही उठाएंगें।
गर्मियों के दिन थे।
संयुक्त परिवार था, हमारे घर की बुज़ुर्ग महिलाएँ और बच्चे आंगन में सोते थे,
और घर के बड़े बूढ़े और कुंवारे घर के बाहर नीम के पेड़ के आस पास।
गांव में लोग जल्दी सो जाते थे , रात नौ बजे के बाद तो पूरे मोहल्ले में सन्नाटा पसर जाता था।
एक दिन मेरे पड़ोसी ,जो मेरा सहपाठी भी था, ने उकसाया कि आज रात नाईट शो फ़िल्म देखकर आते है। खाना खाकर चुपके से निकल जायेंगे। बिस्तर तो घर के बाहर लगा ही रहेगा।
बस एक ही खतरा था कि इन नदारद रहे तीन घंटो में अगर बारिश हो गयी तो पकड़े जाएंगे।
हम अपने इस प्रोग्राम को अंतिम प्रारूप दे ही रहे थे कि मुझसे दो साल छोटा चचेरा भाई दबे पांव आ टपका। उसने हमारी बातें सुन ली थी।
पहले तो मैं उसे देखकर सकपकाया ,फिर अपने मित्र की ओर देखा। दोनों की आंखों आंखों में सहमति बनी की इसे भी शामिल करना ही पड़ेगा।
मैंने उससे पूछा कि चलोगे फ़िल्म देखने? साथ में ये भी जोड़ दिया कि टिकट के पैसे उसे ही जुगाड़ने होंगे क्योंकि मेरा हाथ अभी तंग है।
उसने असमर्थता जताई।
मैंने कहा कोशिश तो करो ,अभी तो दो दिन बाकी है।
मेरे कहने पर उसने कोशिश तो बहुत की पर जब वो कहीं से भी कामयाब नहीं हुआ, फ़िल्म देखने की चाह ने उसके हाथों को चाची के बटुए तक पहुंचा दिया ।
वो पकड़ा गया और पिटा भी।
मैंने अकेले में उसे ढांढस बंधाया कि चलो कोई बात नहीं, अब जो होना था वो तो हो गया। साथ में ये वादा भी किया अगली बार उसे भी साथ लेकर चलूँगा।
मैंने लहजे में नर्मी लाते हुए कहा , रात को थोड़ा ध्यान रखना।
रात को साढ़े बारह बजे जब हम लौटे, तो देखा मेरा बड़ा भाई, जो घर के अंदर सोता था, मेरे बिस्तर पर सोया पड़ा है।
मुझे भांपते देर न लगी कि ये किसकी मुखबिरी है।
पर मैं इसके पीछे की वजह टटोल रहा था कि ऐसा उसने इस कारनामे में खुद शामिल न होने की वजह से किया या फिर उस पिटाई जिल्लत की वजह से किया है?
और वो इसकी भरपाई मुझको जलील होता देख , करना चाहता था।
सारी रात मैंने अपने सहपाठी के साथ उसके बिस्तर पर बैठ कर गुज़ारी।
और कल के संभावित सवालों के जवाब तलाशने में
जुट गया!!!