मुक्त काव्य
एक मुक्त काव्य…………
“कर्म ही फल बाग है”
भाग्य तो भाग्य है
कर्म ही तो फल बाग है
बारिश के जल जैसा
थैली में भर पैसा
ओढ़ ले पैसा ओढ़ा दे पैसा
पानी के जैसा बहा दे पैसा
किसका अनुभाग है
कर्म ही तो फल बाग है॥
कुंए का जल है परिश्रम
बारिश का नहाना बिना श्रम
भाग्य में यदा-कदा होती आसानी
बादल हमें रोज कब पहुंचाए पानी
भरोषे पर बैठना कितनी नादानी
दादी सुनाती कर्म-भाग्य की कहानी
अतीत से सबका अनुराग है
कर्म ही तो फल बाग है॥
धरती की हरियाली न्यारी
दाना-बीज क्यारी-क्यारी
खिले सरसों सरिष पीत फूल
कर्म विधि-विधान हवा बहे अनुकूल
भाग्य भरोसे की हवा बहती प्रतिकूल
सीख दे किसान सही जाय बड़ शूल
करम भाग्य का प्रभाग है
कर्म ही फल बाग है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी