मुक्ती
ख्वाबो में रहने वाली मेरी जान हो तुम। दुनिया से बेखबर मेरी ईमान हो तुम।
चन्द लम्हे भले दूर हुए थे हम, जुबां अगर खोल दूं क़माल हो तुम।। तुम तकदीर हो हमारी ख़ुदा की कसम। जान हो हमारी प्यार कि मिशाल हो तुम। रम्भा भले रिंझाई हो विश्वामित्र को फर्क नहीं,
परियों से खुबसूरत हमारे ख्वाब हो तुम।।
इत्तफाक कहुं मुझे मिल गए हो तुम । ज़िन्दगी से प्यारे मेरे दिल के पास हो तुम।
ये क्या कम है, खुली बहार हो तुम।
इस नश्वर संसार में मेरे अरमान हो तुम।।
स्वरचित:-सुशील कुमार सिंह “प्रभात”