मुक्ति
हे पंछी !
जा उड़ जा इस
पिंजरे से ।
ए मेरे पथिक !
जा चला जा ,
इस घर से।
क्या रखा है यहां तेरा ?
जो तू रुका हुआ है ।
किस आशा से तू यहां ,
ठहरा हुआ है ?
यहां तुझे कुछ नहीं मिलने वाला ।
दुनिया भर की दौलत ,
कोई मनचाही खुशी तो क्या,
यह नश्वर और तुछ शरीर भी ,
तेरा नहीं बनने वाला ।
जा उड़ जा ! जा चला जा !
यह पिंजरा तेरा नहीं है ।
यह घर भी तेरा नहीं है ।
और जो तेरा नहीं है ,
उससे मोह कैसा ?
यह लगाव कैसा ?
कभी न कभी तो जाना ही होगा ,
इससे पहले की तू इस दलदल में
और धंस जाए।
और तुझे अपने मालिक से दूर कर दे ।
जा चला जा ,…..