मुक्ति
अगर बाँधोगे मुझे बंधनों में
तो सच कहती हूँ
उड़ जाऊँगी
मैं मोक्ष के चिंतन की हूँ उत्तराधिकारणी
तुम्हारी पैंदी बातों से उकता जाऊँगी
चाहो तो एक बार उड़ो मेरे साथ
मन को विचरने दो
इसके भेद खुलने दो
हज़ारों सालों से बंद पड़ी है
ये किताब
इसके एक एक पन्ने को बोलने दो ।
शशि महाजन- लेखिका