मुक्ति – कहानी
मुक्ति – कहानी
एक संपन्न परिवार में माता – पिता , भाई , दादा – दादी हैं | इस कहानी की मुख्य पात्र है प्रियंका | परिवार में शिक्षा के प्रति चेतना विद्यमान है | किसी के भी किसी भी स्तर तक पढ़ने पर कोई रोक नहीं है | प्रियंका ने बी. टेक. की पढ़ाई की है और एक महानगर में एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजिनियर है | उसे नौकरी करते हुई चार साल हो गए |
प्रियंका के साथ काम करने वाला दिव्यांश उसे प्यार करने लगता है | प्रियंका को भी उसके साथ जिन्दगी गुजारने में कोई परेशानी नहीं दिखाई देती | दोनों परिवारों की आपसी सहमति से शादी संपन्न हो जाती है | शादि के बाद प्रियंका को पता चलता है कि दिव्यांश थोड़ा शक्की दिमाग का व्यक्ति है साथ ही थोड़ा रूढ़िवादी एवं दकियानूसी विचारों से पोषित भी है |
छोटी – छोटी बातों पर शक करना पर मुंह से कुछ न बोलना यह उसकी विशेषता थी | धीरे – धीरे वह अंदर ही अंदर घुटने लगा | प्रियंका के किसी से बात करने पर ही वह शक करने लगता | एक दिन उसने प्रियंका को स्टाफ के ही ललित के साथ हंस – हंसकर बात करते देख लिया | शाम को घर पहुँचते ही वह शुरू हो गया | प्रियंका ने जब समझाना चाहा तो दो – चार थप्पड़ भी लगा दिए | यह क्रम चलता रहा | प्रियंका चाहकर भी अपने घरवालों से बात छुपा रही थी कि शायद समय के हिसाब से सब कुछ बदल जाएगा |
शादी के दो वर्ष बाद प्रियंका गर्भवती हुई तो दिव्यांश ने पुत्र की इच्छा उसके सामने रखी | प्रियंका ने वैज्ञानिक कारण देते हुए कहा – जो प्रभु की मर्जी | पर दिव्यांश पर तो पुत्र का भूत सवार था | छः माह बाद गैर कानूनी तरीके से दिव्यांश ने प्रियंका का अल्ट्रा साउंड करा दिया तो रिपोर्ट में पता चला कि प्रियंका के गर्भ में एक बेटी पल रही है | यह सुन दिव्यांश के क्रोध की सीमा न रही | उसने साफ़ – साफ़ शब्दों में प्रियंका से कहा कि मुझे यह बच्चा नहीं चाहिए | इसे गिरा दो किन्तु प्रियंका ने मना कर दिया और फिर वही दो –चार थप्पड़ और |
एक दिन अचानक दिव्यांश अपने साथ प्रियंका को चेकअप के बहाने डॉक्टर के पास ले जाता है जहां उसे जांच के बहाने बेहोश कर दिया जाता है और उसका गर्भपात कर दिया जाता है | प्रियंका को जब यह पता चलता है तो वह दिव्यांश की इस हरकत पर खूब लताड़ लगाती है और भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने को कहती है | प्रियंका अपनी शादीशुदा जिन्दगी को पटरी पर लाने की भरपूर कोशिश करती है | सोचती है एक दिन सब ठीक हो जाएगा | किन्तु परमात्मा को कुछ और ही मंजूर था | दिव्यांश की पुत्र प्राप्ति की भूख उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी | गर्भपात की घटना के एक वर्ष बाद दिव्यांश ने फिर से प्रियंका के सामने बच्चे की इच्छा जाहिर की | प्रियंका ने दिव्यांश को टालने की भरपूर कोशिश की क्योंकि उसका पिछला कटु अनुभव उसे बार – बार रोक रहा था | प्रियंका किसी तरह से दिव्यांश की बात मान लेती है पर इस बार उसकी एक शर्त होती है कि यदि बेटी हुई तो उसे स्वीकार करने में उसे कोई परेशानी नहीं होगी | दिव्यांश ऊपरी मन से हाँ कर देता है | प्रियंका को छः माह का गर्भ है और प्रियंका इस बार बच्चे को लेकर कुछ ज्यादा ही सचेत है | फिर भी चेकअप के बहाने इस बार भी दिव्यांश बच्चे का लिंग पता लगाने में कामयाब हो जाता है | अगले दिन सुबह प्रियंका घर में दिखाई नहीं देती तो दिव्यांश उसे इधर – उधर ढूँढने लगता है |
इधर प्रियंका अपने पति दिव्यांश को बिना बताये अपने मायके आ जाती है | प्रियंका के घरवालों की ओर से दिव्यांश को कोई खबर नहीं दी जाती | दिव्यांश अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता है प्रियंका को ढूँढने की | दिव्यांश परेशान रहने लगता है | कुछ दिन बाद दिव्यांश को तलाक के कागज़ प्राप्त होते हैं | वह सन्न रह जाता है | अपने ससुराल पहुंचकर माफ़ी मागता है | प्रियंका कहती है कि मैं अब और नहीं सह सकती | मैं अपना और अपनी बेटी का भविष्य सुरक्षित करना चाहती हूँ | मैं यदि चाहूँ तो तुम्हारे खिलाफ घरेलू हिंसा और गैरकानूनी गर्भपात का केस दर्ज करा दूं | सारा जिन्दगी जेल में सड़ोगे | तुम्हारी और तुम्हारे डॉक्टर के बीच की सारी बातें मैंने अस्पताल में सुन ली थीं और निर्णय कर लिया था कि बस अब और नहीं | मैं अपने वैवाहिक जीवन के दलदल से “ मुक्ति “ पाकर अपना और अपनी बेटी का भविष्य सुरक्षित कर रही हूँ | अपना भला चाहते हो तो यहाँ से चले जाओ | मेरी और मेरी बेटी की जिन्दगी से दूर |
दिव्यांश अपना सा मुंह लेकर वापस हो लेता है | उसे अपने किये पर कोई पछतावा भी नहीं है |