मुक्तक
सुरभित शीत बयार,घन गरजे चपला संग,
आने को बरसात, विरहनी भरा मन उमंग।
ताड़-तरु खग-विहग संग पूर्वा,लगी गाने,
कूके कोयल, मोर, प्रकृति भी नाचे संग-संग।
नीलम शर्मा ✍️
सुरभित शीत बयार,घन गरजे चपला संग,
आने को बरसात, विरहनी भरा मन उमंग।
ताड़-तरु खग-विहग संग पूर्वा,लगी गाने,
कूके कोयल, मोर, प्रकृति भी नाचे संग-संग।
नीलम शर्मा ✍️