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3 Jan 2017 · 1 min read

मुक्तक

कत्ल कर ना यूं तीरे नज़र से मुझको
हम तो पहले से ही तुझी पर मरते हैं
आती हो ख्यालात में मेरे तुम जब
चाँद छुप जाता है अपने ही आगोश में
क्यों परेशां करती हो तुम मुझको
तेरे साये से भी अब तो प्यार है मुझको
जी करता है कि तेरी नज़रों की ख़ातिर
नज़र कर दूं मैं जिंदगानी अपनी
तूं मने या ना माने सिर्फ तेरे ख़ातिर
इस जिस्म में है स्वांसे मेरी ।।
?मधुप बैरागी

Language: Hindi
372 Views
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