मुक्तक
” जिक्र न हो मजहब का जिसमे ऐसे नाम कहां मिलते हैं?
माँ के चरनों से बढकर कोई भी धाम कहां मिलते हैं?
धनुष तोड़ दे भ्रष्टाचार की जो बस एक ही झटके में,
सत्ता के इस स्वयंवरण में ऐसे राम कहाँ मिलते हैं?
” जिक्र न हो मजहब का जिसमे ऐसे नाम कहां मिलते हैं?
माँ के चरनों से बढकर कोई भी धाम कहां मिलते हैं?
धनुष तोड़ दे भ्रष्टाचार की जो बस एक ही झटके में,
सत्ता के इस स्वयंवरण में ऐसे राम कहाँ मिलते हैं?