मुक्तक
मुक्तक
(1)
आशिकों का क्या ज़माना आ गया।
दर्द सहकर मुस्कुराना आ गया।
दे भरोसा प्यार में सौदा किया-
प्यार किश्तों में चुकाना आ गया।
(2)
रौद्र रूप धर नटवर उर में।
गरजो तांडव कर अंबर में।
शोणित भू संताप हरो अब-
ज्वाला भर दो हर प्रस्तर में।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर