मुक्तक
न काला धन ही आया है न पंद्रह लाख आया है
न जाने आए कब वो दिन जिसे अच्छा बताया है
जरा समझो वतन के हुक्मरां की इस सियासत को
दिखा कर ख्वाब अच्छे दिन का फिर ठेंगा दिखाया है
. प्रीतम राठौर भिनगाई
न काला धन ही आया है न पंद्रह लाख आया है
न जाने आए कब वो दिन जिसे अच्छा बताया है
जरा समझो वतन के हुक्मरां की इस सियासत को
दिखा कर ख्वाब अच्छे दिन का फिर ठेंगा दिखाया है
. प्रीतम राठौर भिनगाई