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5 Dec 2018 · 1 min read

मुक्तक

उगे शायद ज़मीं से ख़ुद-ब-ख़ुद दीवार बैठे हैं
समझते हैं की हम दरिया-ए-ग़म के पार बैठे हैं
ऐसी न थी दुनिया अभी कल तक ये आलम था
यहाँ दो चार बैठे हैं वहाँ दो चार बैठे हैं

Language: Hindi
360 Views
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