मुक्तक
मेरी भूखी निगाहों में शराफत ढूंढने वाले,
तेरी सोने की थाली में मेरे हक़ के निवाले हैं,
हमारी झोपडी का कद बहुत ऊंचा नहीं लेकिन
तेरे महलों से ज़्यादा तो मेरे घर में उजाले हैं,
मेरी भूखी निगाहों में शराफत ढूंढने वाले,
तेरी सोने की थाली में मेरे हक़ के निवाले हैं,
हमारी झोपडी का कद बहुत ऊंचा नहीं लेकिन
तेरे महलों से ज़्यादा तो मेरे घर में उजाले हैं,