मुक्तक
1
उलझनों से निकल नहीं पाई
ठोकरों में सँभल नहीं पाई
बदले भी रास्ते बहुत अपने
अपनी किस्मत बदल नहीं पाई
2
कर्मों से जग ये झुकाया हमने
रात दिन तन ये तपाया हमने
करना था दूर अँधेरों को जब
दिल भी अपना ही जलाया हमने
3
आसान नहीं जीना जीवन है
रिश्तों में भी कितनी उलझन है
तेरे मेरे की जंग छिड़ी है
प्रेम नहीं है अब बस बन्धन है
24-10-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद