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8 Oct 2018 · 1 min read

मुक्तक

मुक्तक

झुका ये शाख-ए-गुल चंदा’ गज़ब की प्रीत बरसाए।
ज़मीं पे ख़ुशनुमा मौसम फ़िज़ा में गीत भरमाए।
छिटकती चाँदनी करती बहारों को यहाँ सजदा-
लिए आगोश में लतिका शज़र सा मीत शरमाए।

पिलादे जाम तू साक़ी अधर पर बात बाक़ी है।
सजाओ प्यार की महफ़िल अभी जज़्बात बाक़ी है।
भिगोती शबनमी बूँदें ज़मीं पर नूर बरसातीं-
ठहर जा चाँद प्रीतम की अभी सौगात बाक़ी है।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
1 Like · 617 Views
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