मुक्तक
रियासत जब भी ढहती है नवासे दुख उठाते हैं,
कहीं पंचर बनाते हैं कहीं तांगा चलाते हैं,
बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी कमाते हैं,
सुबह से शाम तक फुटपाथ पर किस्मत बताते हैं।
रियासत जब भी ढहती है नवासे दुख उठाते हैं,
कहीं पंचर बनाते हैं कहीं तांगा चलाते हैं,
बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी कमाते हैं,
सुबह से शाम तक फुटपाथ पर किस्मत बताते हैं।