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27 Aug 2018 · 1 min read

मुक्तक

खुद पर क़ाबू क्या पाते,बेक़ाबू जज़्बात रहे,
तुम दोषी ना हम दोषी,दोषी तो हालात रहे,
उम्मीदें थीं मरहम की,पर मिले आघात हमें,
अंत भला हो या मालिक,कैसी भी शुरुआत रहे।

Language: Hindi
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