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12 Aug 2018 · 1 min read

मुक्तक

किसी राजा या रानी के डमरु नही हैं हम,
दरबारों की नर्तकी के घुन्घरू नही हैं हम,
सत्ताधीशों की तुला के बट्टे भी नही हैं हम,
कोठों की तवायफों के दुपट्टे भी नही हैं हम,
अग्निवंश की परम्परा की हम मशाल हैं ,
हम श्रमिक के हाथ मे उठी हुई कुदाल हैं।

Language: Hindi
519 Views
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