मुक्तक
कोई बादशाह यहाँ, कोई बना गुलाम
करे गुलामी रात दिन,करते रहे सलाम।
ऐसे ही होता यहाँ, राजनीति का खेल
बादशाह के राज में, मरती जनता आम।।
भाऊराव महंत “भाऊ”
कोई बादशाह यहाँ, कोई बना गुलाम
करे गुलामी रात दिन,करते रहे सलाम।
ऐसे ही होता यहाँ, राजनीति का खेल
बादशाह के राज में, मरती जनता आम।।
भाऊराव महंत “भाऊ”