मुक्तक
जीवन को महकाने वाले, इत्र कहां मिलते हैं,
प्रीत हो जिससे रेखांकित, वे चित्र कहां मिलते हैं।
बदल रहे परिवेश में केवल स्वार्थ निहित रिश्ते हैं,
कृष्ण-सुदामा के जैसे अब मित्र कहां मिलते हैं।।
-विपिन शर्मा
जीवन को महकाने वाले, इत्र कहां मिलते हैं,
प्रीत हो जिससे रेखांकित, वे चित्र कहां मिलते हैं।
बदल रहे परिवेश में केवल स्वार्थ निहित रिश्ते हैं,
कृष्ण-सुदामा के जैसे अब मित्र कहां मिलते हैं।।
-विपिन शर्मा