मुक्तक
विरल से क्यों सब सघन हो गये
खोकर स्वयँ , हस्ताक्षर हो गये
सीखकर ज़िन्दगी से संधियाँ
नाम अपने ही अलग हो गये ।
* सूर्यकान्त द्विवेदी
विरल से क्यों सब सघन हो गये
खोकर स्वयँ , हस्ताक्षर हो गये
सीखकर ज़िन्दगी से संधियाँ
नाम अपने ही अलग हो गये ।
* सूर्यकान्त द्विवेदी