मुक्तक
वादी-ऐ-इश्क, रकीब-ऐ-सरो-सामां क्यों है
मुस्कराता हुआ हर शख्स परअफ़शां क्यों है
हसरत-ऐ-बज़्म थी के हम भी कहें वो भी सुने
हमने कुछ शेर पढ़े हैं, तो ये धुआं क्यों है
©आलोचक
*रकीब-ऐ-सरो-सामां- श्रृंगार का शत्रु
*परअफ़शां- परेशान, झल्लाया हुआ