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9 Nov 2016 · 1 min read

मुक्तक

वादी-ऐ-इश्क, रकीब-ऐ-सरो-सामां क्यों है
मुस्कराता हुआ हर शख्स परअफ़शां क्यों है

हसरत-ऐ-बज़्म थी के हम भी कहें वो भी सुने
हमने कुछ शेर पढ़े हैं, तो ये धुआं क्यों है

©आलोचक

*रकीब-ऐ-सरो-सामां- श्रृंगार का शत्रु
*परअफ़शां- परेशान, झल्लाया हुआ

Language: Hindi
446 Views
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