मुक्तक
जो सरे बज़्म है, मैं उसको छुपाऊं कैसे,
एक चेहरे पे कई चेहरे लगाऊँ कैसे।
मैं आम आदमी हूँ, मैं कोई सियासींदा नहीं,
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आऊँ कैसे।।
#विपिन_शर्मा
जो सरे बज़्म है, मैं उसको छुपाऊं कैसे,
एक चेहरे पे कई चेहरे लगाऊँ कैसे।
मैं आम आदमी हूँ, मैं कोई सियासींदा नहीं,
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आऊँ कैसे।।
#विपिन_शर्मा