मुक्तक
१-
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मधुवन-मधुवन हरियाली है,
औ हरी-हरी तरुवर डाली है,
लता छिछलने लगी देखलो,
कली, सुमन बनने वाली है,
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०
२-
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मेघ हमें न तरसाओ अब,
जल्दी वर्षा बरसाओं अब,
आ धरती की प्यास बुझाओ,
बहुत हुआ जल्दी आओ अब,
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०
रमेश शर्मा”राज”
बुदनी