मुक्तक
मिले जो जख्म अपनों से, नहीं आसान था सीना,
जहां में है बड़ा मुश्किल, लहू के घूंट को पीना।
कभी गिरकर उठे, उठकर गिरे, गिरकर उठे फिर से,
गुजरते वक्त ने हमको, सिखाया जिंदगी जीना।।
-विपिन शर्मा
मिले जो जख्म अपनों से, नहीं आसान था सीना,
जहां में है बड़ा मुश्किल, लहू के घूंट को पीना।
कभी गिरकर उठे, उठकर गिरे, गिरकर उठे फिर से,
गुजरते वक्त ने हमको, सिखाया जिंदगी जीना।।
-विपिन शर्मा