मुक्तक
मुक्तक
(1)
नज़र से जब नज़र मिलती नई रचती कहानी है |
कभी होती खुशी इनमें कभी दर्दे निशानी है |
ये अश्कों का समन्दर हैं कभी लहरें मचलती है –
सभी कहते इसे आँसू अजब इनकी कहानी है |
(2)
तड़पता दर्द से जब दिल निकल आते हैं ये आँसू |
खुशी परवान चढ़ती जब छलक जातेहैं ये आँसू |
हर एक भावों संग रह कर निभाते रिश्ता ए दिल ये-
न रखना भेद सुख – दुख का बता जाते हैं ये आँसू |
(3)
निकला नीर जभी आँखों से कहलाया खारा पानी |
व्यथा बढ़ी गहरायी पीड़ा बह आया खारा पानी |
आँसू नाम दिया है जग ने व्यथा भार हर लेता है –
धीर बंधाता हिम्मत देता गहराया खारा पानी |
(4)
दर्द हरदम जिगर में छिपाते रहे |
हार कर ज़िंदगी मुस्कुराते रहे |
ग़म नहीं है जफाएं मिली प्यार में –
हम वफाएं सनम से निभाते रहे |
(5)
ज़िंदगी का एक तुम्ही आधार हो |
नाँव हूँ मैं तुम मेरी पतवार हो |
तेरी चाहत में समायी हर खुशी –
तुम ही मेरी ज़िंदगी का सार हो ||
(6)
प्यार ही सच मानिये तो ज़िंदगी का सार है |
नफरते दिल से मिटाने का यही आधार है |
प्यार यदि होता न जग में तो मनुज रहता कहां –
प्यार जीवन प्यार ज्योति प्यार ही संसार है |
(7)
प्यार अहसास है जो रूह को महकाता है |
प्यार आधार है जो जिन्दगीबनाता है |
प्यार पूजा है इबादत है खुदाई सारी –
प्यार दुनिया को बसाता है और सजाता है |
(8)
बंद आँखो मे रम रहे हो तुम |
हर तरफ़ मुझको दिख रहे हो तुम |
धड़कनों के स्वरों मे बजते हो –
मेरे मन में महक रहे हो तुम |
(9)
नींद आँखो में नहीं दीद को तरसती हूँ |
मूँद पलके तेरे ख्वाबों में मैं सँवरती हूँ |
प्रेम के इत्र से तेरे मैं इस कदर भीगी –
दूर रह कर भी तेरे प्यार से महकती हूँ |
(10)
चैन पल – भर नहीं करार नहीं |
गुल खिले लाख पर बहार नहीं |
हर तरफ़ दिख रहे हो मधुसूदन –
बिन तेरे मेरा कुछ अधार नहीं |
(11)
सुनो खग बात मेरी पत्र पिय को जा जरा पहुँचा |
न कटते रात दिन अब तो उन्हे जा कर जरा बतला |
करूँ श्रंगार सोलह नित्य प्रति खुद को सँवारू मैं –
निहारूँ पंथ निश -दिन थक गये नैना जरा समझा |
(12)
अधर की लालिमा गुम है नयन पथरा रहे अब तो |
त्रषित मन जल रहा पिय बिन अधर कुम्हला रहे अबतो |
दिखा दो अब दरश प्रियतम विरह में जल रही हूँ मैं –
हुई है श्वांस गति धीमी बहुत घबरा रहे अब तो |
(13)
उड़ाने कल्पनाओं की भरा करता है मन मेरा |
गुलाबी नील अंबर को छुआ करता है मन मेरा |
कलम को पूजती हूँ मैं सरस्वती की पुजारी हूँ –
करूँ साहित्य का सर्जन रटा करता है मन मेरा |
(14)
दिखाये पथ सदा लेखन बुहारे रूप भारत का |
उजाला ज्ञान का भर दे निखारे रूप भारत का |
मिटा कर नफरते दिल की मिटा दे दहशतें सारी –
दिलों को प्रेम मय कर दें सँवारे रूप भारत का |
(15)
करूँ आराधना तेरी यही अरदास करती हूँ |
सदा हो हाथ तेरा शीश पर ये आस करती हूँ |
मैं खाली एक ‘मंजूषा’ थी विविध रंग भर दिये
तुमने-
तुम्हारी ही कृपा से संग सफलता वास करती है |
(16)
हल्दी चूना और नीर क्षीर,एक दूजे से जब मिलते हैं |
गुण दोष भुला देते अपने, एक नया रूप ले सजते
हैं |
इन जैसी ही मित्रता जहाँ ऐसा ही सच्चा प्रेम जहाँ –
होते सपने साकार वहाँ नित मंगल होते रहते है |
(17)
जीवन में खुशियाँ हों सुरभित हो दामन |
काव्य का मकरन्द झरे महक उठे उपवन |
ग्यान की अविरल धारा हो सदा प्रवाहित-
हम सब स्नान करें भीग जाए जन – मन |
(18)
काश्मीर की यह हरीतिमा नील गगन को चूम रही |
शोभित पर्वत सुंदर घाटी पवन बसंती झूम रही |
नीरव सन्नाटा गहराया क्यों सूनी ये नौका है –
श्वेत बर्फ सी शान्त झील दहशत में बहती घूम रही |
(19)
माँ की आन बान पर ये प्राण छोड़ जाऊँगा |
हर तरफ खुशी भरे निशान छोड़ जाऊँगा |
पाक हो य चीन अब नहीं रुकेंगे ये कदम –
दहशते मिटा के वो मकाम छोड़ जाऊँगा |
(20)
है भरत की भूमि भारत सिंघ ही जनती है ये |
गर्जना हुंकार से दस दिश गुंजा देती है ये |
सिर कटाने से नहीं डरता यहाँ का नौ जवां-
भारती माँ के चरण दुश्मन लहू रंगती है ये |
(21)
पाक के नापाक कदमों का नही है काम अब |
चीन की हर चाल का देना उचित है दाम अब |
आंच दहशत की धरा पर यूँ नही सुलगा यहाँ
मौन हैं कुछ सोंच कर वर्ना न हैं नाकाम अब |
(22)
हालते कश्मीर की सूरत बदलनी चाहिये |
दहशतों की बर्फ वादी से पिघलनी चाहिये |
वक्त ने बीते समय विष बीज जो बोया वहाँ –
वो शज़र उसकी जडे जड़ से उखड़नी चाहिये |
(23)
उम्मीदें हसरतें दिल की जुदा कैसे करे कोई |
वफाओं और जफाओं से भला कैसे बचे कोई |
मोहब्बत का अजब आलमकोई हँसता कोई रोता –
अजब है दासतां दिल की बयां कैसे करे कोई |
(24)
मथुरा में बसे श्याम काहे बिसराई|
सावन की रुत मोहे लागे हरजाई |
सूना है मधुवन तोहे झूलना पुकारे-
चाँद की चंदनियाँ है मोहे जराई |
(25)
तुम्हारे नेह के सावन में भीगा मन हुआ पावन |
तुम्हारी राधिका का मन बना निधिवन खिला आँगन |
नयन द्रग बिंदु झरते हैं सुमन कुम्हला गये सारे –
किया मथुरा गमन मोहन विरह में जल रहा तनमन |
(26)
धरा ने ओढ ली धानी चुनर सावन बरसता है |
उमंगो से भरा तन – मन बड़ा पावन सरसता है |
पिया के नाम की मेंहदी रचाई दोनो हाथो में –
महक ये प्यार की जिससे मेरा तन-मन महकता है |
(27)
घिरी घनघोर कारी बादरी सावन बरसता है |
बढाती पेंग झूला बादलों से बात करता है |
न चिंता न फिकर कोई मेरे बाबुल का है आँगन –
पिया के देश में सावन भि क्या ऐसे बरसता है ?
(28)
धरा ने ओढ ली धानी चुनर सावन बरसता है |
उमंगो से भरा तन – मन बड़ा पावन सरसता है |
पिया के नाम की मेंहदी रचाई दोनो हाथो में –
महक ये प्यार की जिससे मेरा तन-मन महकता है |
©®मंजूषाश्रीवास्तव