मुक्तक
जो चरागों से रौशन दुआरे रहे
वो हमारे नहीं वो तुम्हारे रहे
जिनके चहरे पे चहरों का था आवरण
वो ज़माने में अक्सर सितारे रहे
जो चरागों से रौशन दुआरे रहे
वो हमारे नहीं वो तुम्हारे रहे
जिनके चहरे पे चहरों का था आवरण
वो ज़माने में अक्सर सितारे रहे