“मुक्तक”
“मुक्तक”
नाच रही परियों की टोली, शरद पूनम की रात है।
रंग विरंगे परिधानों में, सुंदर सी बारात है।
मन करता है मैं भी नाचूँ, गाऊँ इनके साथ में-
धवल चाँदनी खिली हुई है, सखी आपसी बात है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
“मुक्तक”
नाच रही परियों की टोली, शरद पूनम की रात है।
रंग विरंगे परिधानों में, सुंदर सी बारात है।
मन करता है मैं भी नाचूँ, गाऊँ इनके साथ में-
धवल चाँदनी खिली हुई है, सखी आपसी बात है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी