मुक्तक
कोई नहीं है मंजिल न कोई ठिकाना है!
हरपल तेरी याद में खुद को तड़पाना है!
मैं कैसे रोक सकूँगा नुमाइश जख्मों की?
जब शामे-तन्हाई में खुद को जलाना है!
#महादेव_की_मुक्तक_रचनाऐं
कोई नहीं है मंजिल न कोई ठिकाना है!
हरपल तेरी याद में खुद को तड़पाना है!
मैं कैसे रोक सकूँगा नुमाइश जख्मों की?
जब शामे-तन्हाई में खुद को जलाना है!
#महादेव_की_मुक्तक_रचनाऐं