मुक्तक
सूख गये अश्क़ तो आंखों में उतरेंगे कैसे,
टुकड़े टुकड़े दिल को कोई जोड़े तो कैसे,
बेदर्द मुहब्बत तो दर्द क्या समझे बेदर्दी,
गम भी जहर है जहर को जहर मारे कैसे,
कवि बेदर्दी
सूख गये अश्क़ तो आंखों में उतरेंगे कैसे,
टुकड़े टुकड़े दिल को कोई जोड़े तो कैसे,
बेदर्द मुहब्बत तो दर्द क्या समझे बेदर्दी,
गम भी जहर है जहर को जहर मारे कैसे,
कवि बेदर्दी