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30 Aug 2017 · 1 min read

मुक्तक

मुक्तक
पिलाता रोज़ है साकी नज़र का नाम होता है।
नहीं मजहब शराबी जात का बस जाम होता है।
निगाहें फेर कर जब भी दिखाई बेरुखी उसने
भुलाता दर्द ज़ख्मों का दवा का नाम होता है।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी।(मो.-9839664017)

Language: Hindi
303 Views
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