मुक्तक
मुक्तक
सुनाते हाले दिल हमको कभी यूँ ग़म नहीं सहते।
मनाते रूँठते हमसे ज़माने से नहीं कहते।
मिलेगा क्या भला हमको वफ़ा की आरजू से अब-
खुदाई मुस्कुराती तब सनम तन्हा नहीं रहते।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी(मो.-9839664017)