मुक्तक
जब भी जुल्मों-सितम की इन्तहाँ होती है!
भटकी हुई चाहत की जुस्तजू रोती है!
हर वक्त सताती है तन्हाई ख्यालों को,
दर्द की रातों में जिन्दगी कब सोती है?
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय
जब भी जुल्मों-सितम की इन्तहाँ होती है!
भटकी हुई चाहत की जुस्तजू रोती है!
हर वक्त सताती है तन्हाई ख्यालों को,
दर्द की रातों में जिन्दगी कब सोती है?
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय