मुक्तक
सादर प्रेषित
सारस मुक्तक
वल्गा- प्यार
संजीवन प्रसाद है, प्यार उर झंकार।
आकुल व्याकुल रहता, जी चाहे मनोहार।
त्याग,लाग,पराग भी, है अनंत बसंत भी,
कान्हा ज्यों मिले दर्शन, दूं डाल बहियां हार।
कता
नहीं परवाह तुमको है किसी की।
मिल रही है तुझे बदुआ इसी की।
बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना,
नहीं जब चाह तुमको है खुशी की।
नीलम शर्मा
नीलम शर्मा