मुक्तक
मुक्तक
अनुराग
मृदुल मन की लता हिलती है, अनुराग उसमें है।
विरहन विरहा में जो जलती है,, त्याग उसमें है।
किसी भी रूप को दूं, कौन सी रंगीन उपमा मैं,
सिंदूरी सांझ खिलती है,अमिट सुहाग उसमें है।
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हवा छितरायी सी है, अनुराग उसमें है।
सूरज से किरन निकली,बैराग उसमें है।
तुम्हारे सौंदर्य की उपमा मैं किसे कहदूं,
शशि पूनम का निकला,मगर दाग उसमें है।
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मधुर बोली है तेरी,कोयल सा राग उसमें है।
सूरज जो प्रकाश देता,सांझ का त्याग उसमें है।
भंवरा नहीं घूमता यूं ही, फूलों के उपवन में,
पराग पीने की लालसा का अनुराग उसमें है।
नीलम शर्मा