मुक्तक
नहीं आता मुझे किसी के ह्रदय पट को भेदना
आत्मग्लानी बची नहीं कहीं, है खत्म होगई वेदना l
अंतर्मन की शांति ढूंड रहा हर कोई देवालय में
किंतु अपनी त्रूटियों पर क्यों करता कोई खेद ना l
नीलम शर्मा
नहीं आता मुझे किसी के ह्रदय पट को भेदना
आत्मग्लानी बची नहीं कहीं, है खत्म होगई वेदना l
अंतर्मन की शांति ढूंड रहा हर कोई देवालय में
किंतु अपनी त्रूटियों पर क्यों करता कोई खेद ना l
नीलम शर्मा