मुक्तक
ये दिल निकाल कर कहीं रख दो दराज में
हो गये हैं लोग अब पत्थर समाज में
मार कर दिल के जमीरों को खुदा मिलता नहीं
बेवजह ही सर झुकाये बुत खड़े नमाज में
अतुल पुण्ढीर
ये दिल निकाल कर कहीं रख दो दराज में
हो गये हैं लोग अब पत्थर समाज में
मार कर दिल के जमीरों को खुदा मिलता नहीं
बेवजह ही सर झुकाये बुत खड़े नमाज में
अतुल पुण्ढीर