मुक्तक 28 मात्रिक
( मुक्तक 28 मात्रिक)
प्रदत्त शब्द- शिक्षा, जीवन, अनुदान
तुहीं सांसें, तुहीं धड़कन, तुहीं हर अंग है भगवन।
तुम्हारे बिन कहाँ जीवन, में’ कोई रंग है भगवन।
न कोई गम सताएगी, न खुशियाँ दूर जाएंगी-
न कोई फ़िक्र है मुझको, तू’ जबतक संग है भगवन।
देखते हैं और कितना पास में अनुदान होगा।
पाक तेरा देख लेना, चूर सब अभिमान होगा।
रक्त की नदियांँ बहेंगी, हो गया संग्राम यदि अब-
ना रहेगा चीन, पाकिस्तान, हिंदुस्तान होगा।
शिक्षा सबको सुलभ नहीं है, मँहगी बहुत दवाई ।
रोजगार की बात करोगे, मार पड़ेगी भाई।
कागज में सब ठीक-ठाक है, दिखती नहीं हकीकत।
वादे कर के मुकर रहे हैं, हाकिम हुए कसाई।
बुजुर्गो के लिए दिल में, तनिक सम्मान दे देना।
भले दुख जिंदगी में हो, मुझे मुस्कान दे देना।
जहाँ शिक्षा नहीं होती, वहीं अपराध होता है-
मुझे दौलत न दो भगवन, जरा सा ज्ञान दे देना।
हृदय से आज अपनी याद, को आजाद कर लेना।
मिले जितनी खुशी उतना, मुझे बर्बाद कर लेना।
तुम्हारे बिन सुनो अब तो, बड़ा मुश्किल हुआ जीवन।
मिले फुर्सत कभी तुमको, मुझे भी याद कर लेना।
जहाँ निज सर्वार्थ में लिपटा हुआ इंसान मिलता है।
वहाँ भक्ति नहीं होती, नहीं भगवान मिलता है।
सुनो अब हर कदम पर आज भ्रष्टाचार है फैला-
यहाँ जो पात्र हैं उनको, कहाँ अनुदान मिलता है।
जहाँ मिथ्या दिखावा हो, वहाँ से ज्ञान मत लेना।
किसी के होंठ से सुन लो, कभी मुस्कान मत लेना।
गरीबों का कभी हक मार कर खुशियांँ नहीं मिलती-
अगर सामर्थ है तुझ में, कभी अनुदान मत लेना।
जहाँ झूठी प्रशंसा हो, वहाँ से वाह मत लेना।
सुपथ में हो भले बाधा, कभी बदराह मत लेना।
मिले दो वक्त की रोटी, सुखी जीवन यही तो है-
गरीबों की दुआ ले लो, कभी तुम आह मत लेना।
कसम खा लो हृदय में आज, यह अरमान ले लेना।
मिले यदि दान शिक्षा का, सुनो तुम दान ले लेना।
जगत में आज शिक्षा से, नहीं कोई बड़ा धन है-
पतित से भी मिले यदि ज्ञान, तो तुम ज्ञान ले लेना।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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