** मुक्तक **
** मुक्तक **
पारा गिरकर शून्य की, ओर आ रहा नित्य।
हर तरफ बढ़ रहा, सर्दी का अधिपत्य।
हिम आच्छादित हो रहे, ऊंचे पर्वत श्रृंग।
श्वेत धुंध से झांकता, भोर समय आदित्य।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य