#मुक्तक-
#मुक्तक-
■ शुक्ल पक्ष के साथी।
[प्रणय प्रभात]
सार्वजनिक अनुबंध सैकड़ों, कुछ समझौते गुप्त हए,
हम भी ज्वालामुखी कभी थे, लावा खो कर सुप्त हुए।
सब सम्बंध खोखले निकले, बरसों तक पाले-पोसे,
शुक्ल पक्ष में साथ खड़े थे, कृष्ण पक्ष में लुप्त हुए।।
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