#मुक्तक-
#मुक्तक-
■ तमाशा देखने वालों!!
[प्रणय प्रभात]
“मुझे है धूप की आदत,
गुज़ारिश क्यों करूं तुम से?
अगर बस में तुम्हारे हो,
तो मुझको छांव मत देना।
सफ़र मेरा, मुसाफ़िर मैं,
मेरी मर्ज़ी, चलूं जैसे।
तमाशा देखने वालों,
फटे में पांव मत देना।।”
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