* मुक्तक* *
* मुक्तक* *
~~
शोर मचाते हैं बहुत, श्वेत कपासी मेघ।
और किया करते सहज, दूर उदासी मेघ।
रिमझिम हैं जब बरसते, हर्षित होते लोग।
बन जाते हैं स्वयं तब, मेल-जोल के योग।
~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ११/०८/२०२४
* मुक्तक* *
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शोर मचाते हैं बहुत, श्वेत कपासी मेघ।
और किया करते सहज, दूर उदासी मेघ।
रिमझिम हैं जब बरसते, हर्षित होते लोग।
बन जाते हैं स्वयं तब, मेल-जोल के योग।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ११/०८/२०२४