मुक्तक …..
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मुक्तक …..
बह्र…..221 2122 221 2122
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बादल उमड़ के आये , बरसेंगे झूम के ये ,
प्यासी ज़मीं की गर्मी ,बुझती हुजूम में ये ,
कोयल कुहुक रही है मौसम के रंग पे भी,
अरमां मचल रहे हैं , पेड़ों के झूम के ये ।
✍️नील रूहानी,,,,,05/07/2024,,